दुदही में आजादी की लड़ाई में यहां के लोगों की देश भक्ति व कुर्बानी, आजादी का अमृत महोत्सव

दुदही में आजादी की लड़ाई में यहां के लोगों की देश भक्ति व कुर्बानी आज भी मशहूर है

 स्वतंत्रा संग्राम सेनानी स्व. कुतुबुद्दीन अंसारी पुत्र स्व. दिलमुहम्मद अंसारी का जन्म 14 अगस्त 1916 को ग्राम दुदही तहसील देवरिया जिला गोरखपुर में हुआ था। पिता की माली हालत अच्छी नहीं थी। इनके मामा का नाम इदमुहम्मद था। ग्राम परसौनी कुबेरनाथ के निवासी थे जो अपने इलाके के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। इनका लालन पालन इनके मामा के यहां ही हुआ। प्राइमरी स्कूल कुबेरनाथ से कक्षा 5 की डिग्री हासिल की। स्कूली दोस्त इनके कृष्णानन्द भारती थे जो अमवा बुर्जग के निवासी थे। एक बार विधायक रहे। धीरे धीरे स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों में सामिल हो गए। 1936 में स्वतंत्रा संग्राम सेनानी की सदस्यता ग्रहण की स्वतंत्रता सेनानी स्व० बाबू गेंदा सिंह के टीम में सामिल होकर 9 अगस्त 1942 को अगस्त कान्ति का बिगुल बजाया था । गोरखपुर जिले के अंतिम छोर साहबगंज, जिसे आजकल तमकुहीरोड सेवरही के नाम से जाना जाता है। 12 व 13 अगस्त को रेल लाइन के पटरियों और टेलिफोन के तारों को उखाड़ दिया। 18 अगस्त को स्थानीय कांग्रेस मण्डल की सभा में देश भक्त मतवाले जमा हुए। इसमें तय हुआ कि अंग्रेजों के चीनी मिल व पोस्ट आफिस पर तिरंगा फहराया जाएगा। देश भक्तों की टोली बंदेमातरम की बोली बुलंद करते हुए जैसे ही आगे बढ़ी अंग्रेज अधिकारियों व पुलिस के जवानों ने बंदूक ताने रेलवे मालगोदाम पर पहुच कर अंधाधुंध निहत्थे लोगों पर गोलिया बरसानी शुरू करदी अंग्रेजों व पुलिस के गोलियों से जतन निवासी गौरी शुक्ल, जानकी चौबे बिहार, मथुरा सिंह बाघाचौक, घरिक्षन राय करवतही अमवाखास, रघुवीर, बाघाचौक, रामानन्द चंचरूखिया, लुटावन सिंह तरया सुजान, भोला, फेंकू, मूइंलोट, मंगल राय आदि 11 लोग शहीद हुए। बाबूगेंदा सिंह के टीम में 28 सेनानी किसी प्रकार बच गए। जिसमें बाबू गेंदा सिंह, कृष्णानन्द भारती, चन्द्रदेव तिवारी, शिवदास त्रिपाठी, रामसुभग वर्मा, बाला भगत, तुफानी ठाकूर, जगरनाथ कुशवाहा, छट्टू कुशवाहा, कुतुबुद्दीन अंसारी, गया गुप्ता, श्रवण गुप्ता, बाबू फतह बहादूर सिंह, बच्चा राय. बिरजू राय, रामधारी कुशवाहा, खेलावन प्रसाद, ताजमुहम्मद, छांगुर कुशवाहा, मुनेसर कुशवाहा, केदार मारवाड़ी, साघूशरण पाण्डेय, सूरज पाण्डेय, कृपाशंकर, रामधारी शास्त्री, रामायण राय थे। बाबू गेंदा सिंह के नेतृत्व में सेवही दुदही के बीच लाइन उजाड़ा गया, दुदही रेलवे स्टेशन में तोड़ फोड़ लूटपाट व दुदही डाकखाना की तोड़ फोड़ लूटपाट, दुदही पुलिस छावनी में आगजनी की, बहपुरवा के सामने रेल पुल को बम से उड़ाने का असफल प्रयास किया गया। अंग्रेजों के कोठी में बैकुंठपुर, बभनौली, दोमाठ, जंगल शाहपुर, किनरपट्टी, बलुही, सपा में लूटपाट की गई। अंग्रेजों के नाक में दम कर देने वाले बाबू गेंदा सिंह की टीम के आपरेशन के लिए पुलिस का विशेष टीम गठित कर फिरंगी हुकुमत ने एक एक करके सबको गिरफतार कर लिया। लेकिन कुतुबुद्दीन अंसारी पकड़ में नहीं आए। उनके पीछे सीआइडी लगाया गया। कुतुबुद्दीन अंसारी भागकर नाम व भेष बदलकर गोरखपुर मियां जी के यहां नौकरी तीन महिना किए। वहां से भागकर जंगल शाहपुर में भेष बदलकर एक महिना के लगभग रहे। वहां से भागकर परसौनी अपने मामा के यहां आए उनपर 13 मुकदमें दर्ज थे, देखते गोली मारने का आदेश था। मुखबिर की सूचना पर 2 अगस्त 1947 को अपने मामा के घर से गिरफ्तार हुए। कोर्ट में पहली पेशी 16 अगस्त को था। 15 अगस्त को देश आजाद हो गया। 26 अगस्त को बाइज्जत जेल से बरी होगए। कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 इंदरा गांधी ने सेनानियों को तामपत्र देकर सम्मानीत करने क्रम में कुतुबुद्दीन अंसारी को तामपत्र देकर सम्मानीत किया गया। कुतुबुद्दीन अंसारी का मुख्य पेशा कपड़ा बुनना था। आगे चलकर वैद्यराज की डिग्री हासिल कर वैद्य जी के नाम से मशहूर हुए। इनकी मृत्यु दमा के लम्बी बिमारी के बाद हृदयगति रूकने से 01.01.1991 को सुबह 9 बजे हुई। जिस समय एक मरीज को दवा खाने का विधि समझा रहे थे। समझाते समय ही रूह परवाज़ कर गयी। कुतुबुद्दीन अंसारी के पिता दिलमुहम्मद, मामा इदमुहम्मद, ससूर दिलमुहम्मद अपने जमाने के मशहूर वैद्य थे। उन लोगों के किताबों से तथा उनके दुवाओं से मशहूर हुए। आज भी इनका नाम लोग बड़े आदर से लेते हैं। इनके इलाज से सैकड़ों कुष्ठ रोगी, बात व्याधि रोगी, अन्य रोगी रोग से निजात पाए। इनके हस्त लिखित दवा की किताब आज भी मौजूद है। कुतुबुद्दीन अंसारी के पुत्र मु0 याकूब अंसारी का घर आज भी दुदही के गोला बाजार और दुदही पूर्वी ढाला के दक्षिण गांव में इनका पूसस्तैनी घर आज भी मौजूद है।

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